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Nand Kishore Chaudhary
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प्रगति के मार्ग पर

मैं मेरे किशोरावस्था में बहुत भोला था। लोगों ने मेरा फायदा उठाने की कोशिश की क्योंकि उन्हें ये लगता था की मासूमियत का मतलब मूर्खता है।

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Nand Kishore Chaudhary

मैं मेरे किशोरावस्था में बहुत  भोला था। लोगों ने मेरा फायदा उठाने की कोशिश की क्योंकि उन्हें ये लगता था की… 

मैं मेरे किशोरावस्था में बहुत  भोला था। लोगों ने मेरा फायदा उठाने की कोशिश की क्योंकि उन्हें ये लगता था की मासूमियत का मतलब मूर्ख होना होता है।  शायद मैं सबसे चतुर व्यक्ति नहीं था, लेकिन मैं अपने जीवन में बहुत पहले ही अच्छे और बुरे के बीच के अंतर को समझने  लगा था। 

अपने जीवन में के शुरुवाती दौर में ही, मैंने अपने आस-पास के लोगों को बहुत से बुरे कर्म करते हुए और नकारात्मकता में ढ़लते हुए देखा था। मैं नहीं चाहता था कि मेरा जीवन और मेरी उपलब्धियों को इस रवैये से प्रभावित होना पड़े और इसलिए मैंने अपने हर काम में प्यार को बढ़ावा देने और प्यार को ही आधार बनाने का का फैसला किया।

 हालांकि मेरे इर्द गिर्द नकारात्मक परिस्थितियों थी जिसके बावजूद मैंने प्यार का रास्ता चुना।  मुझे समझ आया  कि लोग क्यों बुरा व्यवहार करते हैं।

मेरा मानना है की यह एक ऐसी भावना से आता है, जिसमे बहुत से लोग पीड़ित हैं या किसी चीज से परेशान हैं। और यहां समस्या यह है कि जिन लोगों में हीन भावना होती है, वे अक्सर इस लक्षण को अपने भीतर नहीं पहचान पाते हैं।

लोगों में हीन भावना होती है क्योंकि वे उन कंपनियों के लिए काम करते हैं जो सामान्यतः हीनता की भावना से ग्रषित ही होती हैं।

अधिकांश व्यवसाय भय से प्रेरित होते हैं – पर्याप्त लाभ नहीं होने का भय, स्टेकहोल्डर्स को परेशान करने का भय, बाजार में हिस्सेदारी खोने का भय, इत्यादि । 

फिर यह  भावना  स्वाभाविक रूप से उन कर्मचारियों को देदी जाती, जिन कर्मचारियों को  फटकार लगने और नौकरी खोने का डर बना रहता है।

अधिकांश व्यक्ति और व्यवसाय भौतिक पुरस्कारों से प्रेरित होते हैं। हम मानते हैं की अगर हम बहुत पैसा कमाते हैं, तो हम एक महंगे घर और एक फैंसी कार खरीद सकते हैं। अपने अंदर की इक्षा को पूरा करने के लिए हम ये सब करते हैं जिससे हम कभी संतुष्ट नहीं होते। जितना अधिक हम प्राप्त करते हैं, उससे कहीं ज्यादा हमारी इक्षा बढ़ती जाती है। हम इस सोच पर विश्वास करते हुए चीजों का पीछा करते हैं कि वे हमें संतुष्ट करेंगे। लेकिन इस  प्रक्रिया में केवल एक ही चीज होती है जिसमे  हमारे अंदर की इक्षा बढ़ती जाती है। 

कई लोग दोस्तों और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ प्रतिस्पर्धा या मुकाबला  करते हैं। यदि हमारा पड़ोसी एक अच्छे स्तर की कार खरीदता है, तो हम उससे बेहतर, अधिक महंगी कार खरीदने का प्रयास करते हैं। इससे हमें थोड़ी देर के लिए खुशी मिल सकती है, लेकिन लंबे समय के लिए यह हमारे अंदर खालीपन बना देता है। जिससे  नई और बेहतर चीजों को इकट्ठा करने की इच्छा बढ़ जाती है।

नतीजतन, हम जो भी काम करते हैं वह भय में निहित होता है और जिसका कोई अर्थ नहीं है। लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर  आप प्यार और करुणा के दृष्टिकोण से काम और व्यवसाय से संपर्क करते हैं। तो आपके इस व्यवहार में आपकी प्राथमिकता भौतिक लाभ लेना नहीं होगा, बल्कि बिना किसी आर्थिक फायदे के पूर्णता की भावना प्रदान करना होगा।

जब व्यवसाय इस तरह के दृष्टिकोण के साथ काम करते हैं, तो कर्मचारी इस तरह से काम करते हैं जिससे उन्हें संतुष्टि मिलती है। वे अब भय के सायें में काम नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें अपने जुनून को आगे बढ़ाने की स्वतंत्रता दी जाती है। जब आप अपने लिए काम करते हैं तो आपके अंदर मौजूद शून्य जो खालीपन का रूप है वह धीरे-धीरे भरने लगता है क्योंकि आप उपलब्धि और गर्व की भावना महसूस करने लगते हैं।

हर कोई नौकरी करना चाहता है उस काम के लिए जिससे वे प्यार करता है और जहां वे अपने जुनून को, अपने सपने को पूरा कर सकता हैं।

और  हर दिन यह जानते हुए काम करना की आप किसी और की इच्छाओं को पूरा कर रहे हैं।  यह आत्मा को कुचलने और निश्चित  रूप से पूरे संगठन को पतन की ओर ले जाने जैसी परिस्थिति खड़ा करने जैसा है।

यही कारण है कि कंपनियों के लिए यह पहचानना बहुत महत्वपूर्ण है कि दिल से काम करना और करुणा को हर चीज में शामिल करना बेहद जरूरी है।

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