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Kavita Chaudhary
नियुक्तिकरण… एक भ्रम
January 15, 2020
Published on January 2, 2020
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असफलताओं की आजादी

सुचारू रूप से चल रहे काम के माहौल में हमारे मन का डर हमें कुछ नया करने, या यूं कहें बहुत कुछ करने से हर बार रोकता है।

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जबकि, बिना डर के किसी भी काम को पूर्ण करना ज्यादा संभव है। जिसमे हमारा प्रयास और हमारे भाव दोनों ही भी संपूर्ण रूप से शामिल होंगे। 

एक समय की बात है जब एक गांव में नियमित रूप से एक बाघ आया करता था। अब स्वाभाविक रूप से, ग्रामीण भयभीत थे और बाघ द्वारा हमला किए जाने से डरते थे। परेशान ग्रामीण वासियों ने इसका हल निकाला और पहुंच गए एक बुद्धिमान संत के पास जो, पहाड़ों में रहते थे। 

संत ने ग्रामीण वासियों को भरोसा दिलाया कि वह उनके गाँव में आएंगे और उनकी समस्या का समाधान करेंगे। अब, जब संत गाँव में पहुँचे, तो लोग उन्हें देखकर आश्चर्यचकित हो गए  क्योकिं उन्होंने बाघ को कानों से पकड़ लिया था और उसकी पीठ पर बैठ कर पहाड़ों की ओर सवार हो गए। 

संत ने बाद में भ्रमित ग्रामीणों को बताया कि बाघ से डरने के बजाय, उन्हें अपने डर को गले लगाने की आवश्यकता है। नकारात्मकता को खुद से दूर करते हुए  प्यार और दोस्ती एक मात्र साधन है अपने डर पर विजय प्राप्त करने का – जैसा कि संत ने बाघ के साथ किया था।

यह एक अवधारणा है जिसे मैं धीरे-धीरे अपने जीवन और अब हमारे संगठन में एकीकृत कर रहा हूं। चाहे वह जीवन का अंधेरा हो, बड़े जानवर हों या फिर  हमारे काम पर मालिक का होना हो, हम सभी किसी न किसी चीज से डरते हैं। यह डर हमें हमारी कामयाबियों को हासिल करने से रोकता है, खासकर काम के माहौल में। यह सच है कि बिना किसी डर के, हम अपने पूरे सामर्थ्य के साथ कहीं ज्यादा अच्छा और अधिक कर सकते है। 

कल्पना करें, असफलताओं की आज़ादी के बारे में।  वैसे से तो ये कई पीढ़ियों से चली आ रही धारणा है जिसमे हमें हमेशा सबसे अच्छा और सफल होना सिखाया गया है। जब हम स्कूल में होते थे तो हमें सर्वश्रेष्ठ नंबर मिलना चाहिए, अगर हम खेल खेलते हैं तो हमें हमेशा जीतना चाहिए। जब हम खराब नंबर  प्राप्त करते हैं, तो हम उस  खेल से बाहर हो जाते हैं  या समय पर एक कार्य को पूरा करने में असमर्थ होते हैं तो हम बहुत बुरा महसूस करते हैं।

वास्तव में, असफलताओं की इस प्रक्रियाओं को इस तरह नहीं होना चाहिए।

समाज के लिए इसका अर्थ यह है कि हम अपनी सफलता और असफलता को माप कर जीते-मरते हैं। या फिर अधिक सटीक रूप से कहें तो, हम भय से कहीं ज्यादा प्रेरित है- जो सफल नहीं होने का डर है और इसी नकारात्मकता को समाज से दूर करने की हमें जरूरत है। 

जयपुर रग्स में धीरे-धीरे हम ऐसा वातावरण बना रहे हैं जहां, बिना किसी पद को सम्मिलित किये सभी एक स्थान पर अपनी बात को रख सकें। हमने ऐसे   प्रावधान का निर्माण किया है जिसमें  लोगों को एक दूसरे के साथ समान व्यवहार करने और प्रतिक्रिया को खुले तौर पर  रचनात्मक रूप से साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। प्रत्येक कर्मचारी को मुझसे या किसी और प्रबंधकों से  मुलाकात करने, पूरी ईमानदारी से अपनी बात रखने के साथ-साथ  बिना किसी डर के किसी भी मुद्दे पर चर्चा करने की पूरी छूट है। साफ शब्दों में कहें तो, हमारे संगठन में डर के लिए कोई जगह नहीं है।

आम तौर पर, लोगों को बहुत बुरा लगता है जब कुछ गलत हो जाता है। लेकिन यहां गलतियों को स्वीकार करने और एक नई शुरुआत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। हमें यह  महसूस करने की आवश्यकता है कि सभी मनुष्य हैं और गलतियां करने में सक्षम हैं साथ ही हम हर डर को खत्म करने के लिए  भी सक्षम हैं क्योंकि यह तब ही संभव है जब इंसान में प्रामाणिकता और सच्ची लगन होती है।

जब डर को एक प्रेरक के रूप में प्रयोग किया जाता है, तो एक व्यक्ति कुछ भी ऐसा नहीं कर सकता जिसका कोई अर्थ या मूल्य हो और ऐसा इसलिए है क्योंकि वे सिर्फ काम खत्म करना चाहते हैं ताकि उन्हें फटकार न लगे। इस माहौल में, न केवल काम को नुकसान होगा, बल्कि कर्मचारी भी परेशान होगा।

जब कोई गलती हो जाती है, तो आमतौर पर व्यक्तिगत कर्मचारियों को दोषी ठहराया जाता है। संबंधित घटना का शायद ही कभी आत्मनिरीक्षण होता हैं यह जानने के लिए कि गलती पहले स्थान पर क्यों हुई। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि ज्यादातर कंपनियां आदेश और नियंत्रण रखने के तौर-तरीकों पर आधारित होती हैं। इस प्रकार के संगठन बनाने वाले लोग सत्ता शक्ति से प्रेरित होते हैं।

बदलते दौर में, कंपनियों को लोगों को असफल होने की स्वतंत्रता देना शुरू करना होगा। क्योंकि जितना अधिक आप किसी व्यक्ति को असफल होने के साथ खुदको व्यक्त करने की स्वतंत्रता देंगे, उतना आपका संगठन आगे बढ़ेगा ।

 हमारा लक्ष्य है कि हम जयपुर रग्स के सभी कर्मचारियों में एक दूसरे के प्रति दिल से जुड़ाव बनाये। जो किसी भी डर पर प्रेम और दोस्ती की विजय का अंतिम परिणाम है। जब हम दिल से एक दूसरे से जुड़ कर संबंध बनातें हैं, तो चिंता और निराशा का नामो निशान नहीं बचता हैं।

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1 Comment

  1. Piyush Raj says:
    September 21, 2020 at 1:37 pm

    I am very amused after reading this blog that in this outcome oriented world where most of the organization’s working culture is authority and result oriented there still people like N.K Chaudhary Sir, and his organization exists which believes in embracing the failure and fear to draw the learning to succeed like a warrior and I think this is the reason behind the sustainable growth of this organization over the decades.

    Reply

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